Sunday, April 17, 2016

लोग जिसे कहतें हैं कवितायेँ मैं उन्हें कहता हूँ भावनाएं ....
प्रस्तुत है मेरी कुछ भावनाएं .....



पहली कविता 
आधुनिकता ---     
 एक यादो की बहुत पुरानी
 फ्लापी है मेरे पास...
 अब जम गयी है धूल की परतें उस पर कोई cpu उसे
 खोल नही पाता। उन्ही पुराने मूल्यों और
 मान्यताओं की तरह जो अब पुराने हो चले है।
 अब तो जीवन और समाज के मूल्यों की नई नई
 इबारतें लिखी जा रही है थर्ड जेनरेशन के हार्ड
 डिस्क में....
अब दुनिया पुरानी सी नहीं बल्कि एक नई
रोशनी की लालिमा लिए हुए है ।
अब तो ऐसी कल्पना भी नही होती की एक
रचनाकार है बूढ़ा सा एक कुर्सी पे बैठ रचना
कर रहा हो...
अब तो लगता है अभी उस बेकार पड़ी मेज पर
एक लैपटॉप रखा जायेगा और एक बूढ़ा लेखक
भी फेसबुक पर दुनिया से जुड़ जायेगा।।   













 दूसरी  कविता --



 रिश्ते   ----
 कभी-कभी लगता है कि रिश्ते एक पैसेंजर ट्रेन
के लम्बे सफ़र की तरह होतें है।
शुरू-शुरू में तो ढेर सारी चहल-पहल हँसी-ठहाके
नए सफ़र में चलने का जोश होता है...
फिर 1-2 घ0 में लोग खामोस होने लग जाते है।
ऊँघने लग जाते है,बात-चीत अधूरा छोड़कर खुद
में मसरूफ़ हो जाते है,
सफ़र थोडा और बढ़ता है तब रिश्ता एक गहरी
नींद में सो चुका होता है...
वही मुसाफिर जो हँसते-खेलते ख्वाबो को
अटैची में लेके उम्मीदों को होल-डॉल में बांध
के सफर के शुरुआत में आये थे,वही अब सफर से ऊब
गए होते है।






तीसरी  कविता -




सपनें का मर जाना ...
कभी कभी कुछ सोचता हूँ
सबसे बुरा होता है
सपने का मर जाना
सोचो उस
हसीन नींद
का आना
जमीन पर
सोते हुए
आपका सिंगापुर
पहुंच जाना
हसीन नजारो में
आपका खो जाना
इतने में
खुद ही
थप्पड़ गाल
पर लगाना
और
अचानक
जाग जाना
कितना बुरा
होता है ना
एक मच्छर
के कारण
आपके सपने का मर जाना !
बुरा लगता है न ..





चौथी  कविता 
-वो लड़की क्यों नही ----- 


कमरे के अँधेरे में उसके आसूँ
दिखते नहीं        उसके आँसू
विलुप्त हो चुकें है       उसके अस्तित्व की ही तरह
सोचती है...
बचपन से पापा कहते है..
''यह मेरी बेटी नहीं बेटा है'' अम्मा भी तो
कहती थी
''तू है मेरा राजा बेटा है '
वो चीखती है मन ही मन
सोचती है ''मैं बेटी क्यों नहीं''???







पांचवी कविता  ...
  मैं आज भी हकलाता हूँ....
  तुम जब सामने आती हो,कुछ शब्द सामने आतें हैं...
  कई बार सोचा कह दूँ तुमसे ....
  तुम अच्छीलगती हो ..                                 
  चाहता हूँ तुमको ..
  पर जानती हो शब्द निकलते नही हलक से मेरे...
  डर नही लगता ,बस शर्मा जाता हूँ ...
  पर आज मैं बोलूंगा,
  और तुम सिर्फ सुनोगी ..
  मैं बोलूंगा कि प्यार करता हूँ तुमसे...   
  मैं बोलूंगा कि अच्छी लगती हो तुम मुस्कुराते हुए...                            पर ये क्या ...
 कह दिया सब  आज दिल कि बात फिर भी चुप हो तुम ..........
  मुस्कुराके कुछ कहती भी नही    .......
  कुछ बोलती भी नही    ...                  
  आखिर तुम्हे हुआ क्या है ...
  फिर आचानक पसीने से तर-बतर मैं उठा तो लगा सुबह हो गयी
   अच्छा तो बस ये सपना था
   कल्पना थी बस मेरी   
    तो आज भी मैं हकलाता हूँ ,शर्माता हूँ तुमसे कुछ कहने में।
                     



 छटवीं कविता :~~~~            

एक जादुईपेंसल :   
   एक पेंसल है मेरे पास शायद वो जादुई है ,
   वो जो पेंसल है कभी छोटी नही होती ना ही टूटती है कभी  ,
   आखिर कौन सा जादू 
   कौन सा तिलिस्म  है उसमे जो वर्षो से बचा है
   उसका अस्तित्व ?   जानना चाहोगे ? 
   चलो बताता हूँ....
   दरअसल ये वही पेंसल है जो 5वीं के आखिरी एग्जाम के दिन तुमसे        मांगी थी मैंने  ,
   मैंने झूठ बोला था मेरे पास पेंसल नही है..
   दरअसल मैं रख लेना चाहता था 
    वो आखिरी निशानी तुम्हारी प्रेम की ,
    मुझे याद है वो आखिरी शब्द 
     जो लिखा था मैंने उस पेंसल से 

     वो था तुम्हारा नाम....